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नीना ब्रिगेंजा…चार साल की उम्र से चर्च में पत्नी…बिन ब्याही माँ की औलाद थी…फादर ब्रिगेंजा ने मरने से पहले उसकी माँ जूली की आखिरी निशानी सोने का क्रॉस सौंपते हुए यह राज उसे बताया तो उसे कोई दुःख या परेशानी नहीं हुई न ही मन में हीन भावना पखी । वह चौबीस वर्षीया सुन्दर युवती थी– खुद्दार, गैरतमंद और अपने अलग ढंग से जिंदगी को जीने वाली…मर्दों की किसी भी हरकत पर वह हैरान नहीं होती थी…।

उस रात भी हैरान नहीं हुई… जब पिस्तौल के दम पर उसके घर से ही दो अजनबियों ने उसका अपहरण किया…नीना ने अपनी सूझबूझ और हौसलामंदी से किडनैपिंग को कार एक्सीडेंट में तब्दील कर दिया नतीजा…एक अपहरणकर्ता की मौत और दूसरा गंभीर रूप से घायल…नीना बिलकुल सही सलामत बच निकली…पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट लिखवा दी…। यह महज शुरुवात थी–निहायत ही अजीब सिलसिले की…अगली शाम ऑफिस से लौटती नीना अपनी इमारत में पहुंची तो एक बॉक्सर द्वारा चाकू से उस पर हमला…अचानक आ पहुंचे पुलिस इंस्पेक्टर ने बॉक्सर को शूट कर दिया…।

नीना फिर बच गयी…।

उसी रात एक अजनबी युवक नीना से मिलने आ पहुंचा–करोड़ों कमाने की योजना लेकर…योजना थी–जिंदगी की आखिरी सांसे ले रहे करोड़पति बिजनेसमैन जगत नारायण मेहरा की तमाम दौलत हड़पने की…।

मेहरा की बेटी पूनम दो साल पहले अपनी मर्जी से शादी करके बाप का घर छोड़ गयी थी और कार एक्सीडेंट में मारी जा चुकी थी…उसकी मौत से अनजान मेहरा के एक ही ख्वाहिश थी–पूनम उससे आकर मिले ताकि अपना सब कुछ उसे सौंपकर चैन से मर सके…।

योजना के मुताबिक नीना को मेहरा की बेटी और इकलौती वारीसा पूनम के तौर पर मेहरा के सामने पेश किया जाना था…क्योंकि कद-बुत, रंग और चेहरे मोहरे से वह काफी हद तक पूनम से मिलती थी…।

नीना ने पूरी योजना अच्छी तरह समझने के बाद अपनी सहमति दे दी…।

पुलिस की निगरानी के बावजूद वे इमारत से निकलने में कामयाब हो गए…।

तब नीना की मुलाकात हुई दीवानचंद से…बरसों से मेहरा का पी. ए. और सबसे ज्यादा भरोसेमंद रहा आदमी…इस सारी योजना को बनाने और अमली जामा पहनाने वाला मास्टर क्रिमिनल…।

उसने नीना को पूनम के उठने–बैठने, बोल-चाल वगैरा की बाकायदा रिहर्सल कराकर पूरी तैयारियों के साथ जगतनारायण के सामने पेश कर दिया…।

दीवानचंद को पूरा यकीन था योजना कामयाब हो जायेगी ??