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वह एक पुलिस अफ़सर था। एक थाने का थाना प्रभारी जो ज़ाती रंजिश के तहत अपने मातहत ऑफिसर के पीछे पड़ा हुआ था। उसके पंगेजी मिजाज़ का ये आलम था कि वो खुद को ‘काला नाग’ कहता था जिसका काटा पानी नहीं मांगता था। मुम्बई अंडरवर्ल्ड, पुलिस डिपार्टमेंट के अंदर की राजनीति और ड्रग्स कारोबार का ऐसा शानदार लेकिन रोंगटे खड़े करने वाला चित्रण आपको कहीं नहीं मिलेगा जैसा ‘काला नाग’ में है। साथ ही, मुम्बईया ज़ुबान की खुशबू भी इस उपन्यास में है, जिसे पढ़ते वक्त आप सचमुच असली मुम्बई|